मार हुई मक्खियों के कारण गन्धी का तेल सड़ने और बसाने लगता है; और थोड़ी सी मूर्खता बुद्धि और प्रतिष्ठा को घटा देती है।
2
बुद्धिमान का मन उचित बात की ओर रहता है परन्तु मूर्ख का मन उसके विपरीत रहता है।
3
"वरन जब मूर्ख मार्ग पर चलता है, तब उसकी समझ काम नहीं देती, अैर वह सब से कहता है, मैं मूर्ख हूं।।"
4
"यदि हाकिम का क्रोध तुझ पर भड़के, तो अपना स्थान न छोड़ना, क्योंकि धीरज धरने से बड़े बड़े पाप रूकते हैं।।"
5
"एक बुराई है जो मैं ने सूर्य के नीचे देखी, वह हाकिम की भूल से होती है:"
6
"अर्थात् मूर्ख बड़ी प्रतिष्ठा के स्थानों में ठहराए जाते हैं, और धनवाल लोग नीचे बैठते हैं।"
7
"मैं ने दासों को घोड़ों पर चढ़े, और रईसों को दासों की नाई भूमि पर चलते हुए देखा है।।"
8
जो गड़हा खोदे वह उस में गिरेगा और जो बाड़ा तोड़े उसको सर्प डसेगा।
9
"जो पत्थर फोड़े, वह उन से घायल होगा, और जो लकड़ी काटे, उसे उसी से डर होगा।"
10
"यदि कुल्हाड़ा थोथा हो और मनुष्य उसकी धार को पैनी न करे, तो अधिक बल लगाना पड़ेगा; परन्तु सफल होने के लिये बुद्धि से लाभ होता है।"
11
"यदि मंत्रा से पहिले सर्प डसे, तो मंत्रा पढ़नेवाले को कुछ भी लाभ नहीं।।"
12
"बुद्धिमान के वचनों के कारण अनुग्रह होता है, परन्तु मूर्ख अपने वचनों के द्वारा नाश होते हैं।"
13
"उसकी बात का आरम्भ मूर्खता का, और उनका अन्त दुखदाई बावलापन होता है।"
14
"मूर्ख बहुत बातें बढ़ाकर बोलता है, तौभी कोई मनुष्य नहीं जानता कि क्या होगा, और कौन बता सकता है कि उसके बाद क्या होनेवाला है?"
15
"मूर्ख को परिश्रम से थकावट ही होती है, यहां तक कि वह नहीं जानता कि नगर को कैसे जाए।।"
16
"हे देश, तुझ पर हाय जब तेरा राजा लड़का है और तेरे हाकिम प्रात:काल भोज करते हैं!"
17
"हे देश, तू धन्य है जब तेरा राजा कुलीन है; और तेरे हाकिम समय पर भोज करते हैं, और वह भी मतवाले होने को नहीं, वरन्त बल बढ़ाने के लिये!"
18
"आलस्य के कारण छत की कड़ियां दब जाती हैं, और हाथों की सुस्ती से घर चूता है।"
19
"भोज हंसी खुशी के लिये किया जाता है, और दाखमधु से जीवन को आनन्द मिलता है; और रूपयों से सब कुछ प्राप्त होता है।"
20
"राजा को मन में भी शाप न देना, न धनवान को अपने शयन की कोठरी में शाप देना; क्योंकि कोई आकाश का पक्षी तेरी वाणी को ले जाएगा, और कोई उड़ानेवाला जन्तु उस बात को प्रगट कर देगा।।"