"और राजा ने दूसरे दिन दाखमधु पीते- पीते एस्तेर से फिर पूछा, हे एस्तेर रानी ! तेरा क्या निवेदन है? वह पूरा किया जाएगा। और तू क्या मांगती है? मांग, और आधा राज्य तक तुझे दिया जाएगा।"
3
"एस्तेर रानी ने उत्तर दिया, हे राजा ! यदि तू मुझ पर प्रसन्न है, और राजा को यह स्वीकार हो, तो मेरे निवेदन से मुझे, और मेरे मांगने से मेरे लोगों को प्राणदान मिले।"
4
"क्योंकि मैं और मेरी जाति के लोग बेच डाले गए हैं, और हम सब विध्वंसघात और नाश किए जानेवाले हैं। यदि हम केवल दास- दासी हो जाने के लिये बेच डाले जाते, तो मैं चुप रहती; चाहे उस दशा में भी वह विरोधी राजा की हानि भर न सकता।"
5
"तब राजा क्षयर्ष ने एस्तेर रानी से पूछा, वह कौन है? और कहां है जिस ने ऐसा करने की मनसा की है?"
6
एस्तेर ने उत्तर दिया है कि वह विरोधी और शत्रु यही दुष्ट हामान है। तब हामान राजा- रानी के साम्हते भयभीत हो गया।
7
"राजा तो जलजलाहट में आ, मधु पीने से उठकर, राजभवन की बारी में निकल गया; और हामान यह देखकर कि राजा ने मेरी हानि ठानी होगी, एस्तेर रानी से प्राणदान मांगने को खड़ा हुआ।"
8
"जब राजा राजभवन की बारी से दाखमधु पीने के स्थान में लौट आया तब क्या देखा, कि हामान उसी चौकी पर जिस पर एस्तेर बैठी है पड़ा है; और राजा ने कहा, क्या यह घर ही में मेरे साम्हने ही रानी से बरबस करना चाहता है? राजा के मुंह से यह वचन निकला ही था, कि सेवकों ने हामान का मुंह ढांप दिया।"
9
"तब राजा के साम्हने उपस्थ्ति रहनेवाले खोजों में से हव ना नाम एक ने राजा से कहा, हामान को यहां पचास हाथ ऊंचा फांसी का एक खम्भा खड़ा है, जो उस ने मोर्दकै के लिये बनवाया है, जिस ने राजा के हित की बात कही थी। राजा ने कहा, उसको उसी पर लटका दो।"
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"तब हामान उसी खम्भे पर जो उस ने मोर्दकै के लिये तैयार कराया था, लटका दिया गया। इस पर राजा की जलजलाहट ठंडी हो गई।"