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1 पृथ्वी और जो कुछ उस में है यहोवा ही का है; जगत और उस में निवास करनेवाले भी।
2 "क्योंकि उसी ने उसकी नींव समुद्रों के ऊपर दृढ़ करके रखी, और महानदों के ऊपर स्थिर किया है।।"
3 यहोवा के पर्वत पर कौन चढ़ सकता है? और उसके पवित्रास्थान में कौन खड़ा हो सकता है?
4 "जिसके काम निर्दोष और हृदय शुद्ध है, जिस ने अपने मन को व्यर्थ बात की ओर नहीं लगाया, और न कपट से शपथ खाई है।"
5 "वह यहोवा की ओर से आशीष पाएगा, और अपने उद्धार करनेवाले परमेश्वर की ओर से धर्मी ठहरेगा।"
6 "ऐसे ही लोग उसके खोजी है, वे तेरे दर्शन के खोजी याकूबवंशी हैं।।"
7 "हे फाटकों, अपने सिर ऊंचे करो। हे सनातन के द्वारों, ऊंचे हो जाओ। क्योंकि प्रतापी राजा प्रवेश करेगा।"
8 "वह प्रतापी राजा कौन है? परमेश्वर जो सामर्थी और पराक्रमी है, परमेश्वर जो युद्ध में पराक्रमी है!"
9 "हे फाटकों, अपने सिर ऊंचे करो हे सनातन के द्वारों तुम भी खुल जाओ! क्योंकि प्रतापी राजा प्रवेश करेगा!"
10 "वह प्रतापी राजा कौन है? सेनाओं का यहोवा, वही प्रतापी राजा है।।"