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1 "हे परमेश्वर, जब मैं तेरी दोहाई दूं, तब मेरी सुन; शत्रु के उपजाए हुए भय के समय मेरे प्राण की रक्षा कर।"
2 "कुकर्मियों की गोष्ठी से, और अनर्थकारियों के हुल्लड़ से मेरी आड़ हो।"
3 "उन्हों ने अपनी जीभ को तलवार की नाईं तेज किया है, और अपने कड़वे बचनों के तीरों को चढ़ाया है;"
4 ताकि छिपकर खरे मनुष्य को मारें; वे निडर होकर उसको अचानक मारते भी हैं।
5 "वे बुरे काम करने को हियाव बान्धते हैं; वे फन्दे लगने के विषय बातचीत करते हैं; और कहते हैं, कि हम को कौन देखेगा?"
6 "वे कुटिलता की युक्ति निकालते हैं; और कहते हैं, कि हम ने पक्की युक्ति खोजकर निकाली है। क्योंकि मनुष्य का मन और हृदय अथाह हैं!"
7 परन्तु परमेश्वर उन पर तीर चलाएगा; वे अचानक घायल हो जाएंगे।
8 वे अपने ही वचनों के कारण ठोकर खाकर गिर पड़ेंगे; जितने उन पर दृष्टि करेंगे वे सब अपने अपने सिर हिलाएंगे
9 "तब सारे लोग डर जाएंगे; और परमेश्वर के कामों का बखान करंगे, और उसके कार्यक्रम को भली भांति समझेंगे।।"
10 "धर्मी तो यहोवा के कारण आनन्दित होकर उसका शरणागत होगा, और सब सीधे मनवाले बड़ाई करेंगे।।"