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1 हे यहोवा परमेश्वर मैं अपने पूर्ण मन से तेरा धन्यवाद करूंगा; मैं तेरे सब आश्चर्य कर्मों का वर्णन करूंगा।
2 "मैं तेरे कारण आनन्दित और प्रफुल्लित होऊंगा, हे परमप्रधान, मैं तेरे नाम का भजन गाऊंगा।।"
3 "जब मेरे शत्रु पीछे हटते हैं, तो वे तेरे साम्हने से ठोकर खाकर नाश होते हैं।"
4 क्योंकि तू ने मेरा न्याय और मुक मा चुकाया है; तू ने सिंहासन पर विराजमान होकर धर्म से न्याय किया।
5 तू ने अन्यजातियों को झिड़का और दुष्ट को नाश किया है; तू ने उनका नाम अनन्तकाल के लिये मिटा दिया है।
6 "शत्रु जो है, वह मर गए, वे अनन्तकाल के लिये उजड़ गए हैं; और जिन नगरों को तू ने ढा दिया, उनका नाम वा निशान भी मिट गया है।"
7 "परन्तु यहोवा सदैव सिंहासन पर विराजमान है, उस ने अपना सिंहासन न्याय के लिये सिद्ध किया है;"
8 "और वह आप ही जगत का न्याय धर्म से करेगा, वह देश देश के लोगों का मुक मा खराई से निपटाएगा।।"
9 "यहोवा पिसे हुओं के लिये ऊंचा गढ़ ठहरेगा, वह संकट के समय के लिये भी ऊंचा गढ़ ठहरेगा।"
10 "और तेरे नाम के जाननेवाले तुझ पर भरोसा रखेंगे, क्योंकि हे यहोवा तू ने अपने खोजियों को त्याग नहीं दिया।।"
11 "यहोवा जो सिरयोन में विराजमान है, उसका भजन गाओ! जाति जाति के लोगों के बीच में उसके महाकर्मों का प्रचार करो!"
12 क्योंकि खून का पलटा लेनेवाला उनको स्मरण करता है; वह दीन लोगों की दोहाई को भूलता।।
13 "हे यहोवा, मुझ पर अनुग्रह कर। तू जो मुझे मृत्यु के फाटकों के पास से उठाता है, मेरे दु:ख को देख जो मेरे बैरी मुझे दे रहे हैं;"
14 "ताकि मैं सिरयोन के फाटकों के पास तेरे सब गुणों का वर्णन करूं, और तेरे किए हुए उद्धार से मगन होऊं।।"
15 "अन्य जातिवालों ने जो गड़हा खोदा था, उसी में वे आप गिर पड़े; जो जाल उन्हों ने लगाया था, उस में उन्हीं का पांव फंस गया।"
16 "यहोवा ने अपने को प्रगट किया, उस ने न्याय किया है; दुष्ट अपने किए हुए कामों में फंस जाता है।"
17 "दुष्ट अधोलोक में लौट जाएंगे, तथा वे सब जातियां भी जा परमेश्वर को भूल जाती है।"
18 "क्योंकि दरिद्र लोग अनन्तकाल तक बिसरे हुए न रहेंगे, और न तो नम्र लोगों की आशा सर्वदा के लिये नाश होगी।"
19 "उठ, हे परमेश्वर, मनुष्य प्रबल न होने पाए! जातियों का न्याय तेरे सम्मुख किया जाए।"
20 "हे परमेश्वर, उनको भय दिला! जातियां अपने को मनुष्यमात्रा ही जानें।"